लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी
भाग 41
श्रावण मास में प्रकृति भी एक नववधू की तरह श्रंगार करती हुई दृष्टिगोचर होती है । चहुंमुखी हरियाली से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे प्रकृति ने हरित वस्त्र धारण कर लिए हैं और वह मंद मंद मुस्कान से सबका स्वागत कर रही है । रिमझिम बरसती बूंदें ऐसे लगती हैं जैसे गगन से आनंद की फुहारें धरा पर आ रही हैं । धरा का अंग प्रत्यंग अंकुरित होकर यह जता रहा है कि नव निर्माण प्रकृति का आवश्यक और अनवरत गुण है । सकारात्मक विचार सदैव जन्म लेते हैं और वे भांति भांति के नकारात्मक तूफानों , झंझावातों से सामना करते हुए भी दृढ़ रह सकते हैं । वेग पूर्वक बहता हुआ नदियों का जल लपलपाती कामनाओं सदृश प्रतीत होता है जो मन रूपी अथाह सागर में जाकर विलीन हो जाती है । पशु पक्षी भी श्रावण मास में उल्लासित होकर कूकते हैं, नृत्य करते हैं और विभिन्न प्रकार की अठखेलियां करते हैं । इस मास में भगवान शिव की पूजा करने का जो विधान बनाया गया है उसके पीछे उद्देश्य यही है कि मनुष्य अपने घरों से निकल कर प्रकृति के समीप जाकर उससे तादात्म्य स्थापित करे और स्वयं को प्रकृति मां की गोद में महसूस करे ।
देवयानी को भी पूजा करने जाना था । उसने पूजा की समस्त सामग्री तैयार कर ली थी किन्तु पुष्प अभी तक नहीं आये थे । उसने साधिका से पुष्प वाटिका से पुष्प लाने को कहा । साथ ही यह भी कहा कि काला गुलाब अवश्य लेकर आये । अपने ईष्टदेव को सर्वश्रेष्ठ वस्तुऐं चढ़ाने का आनंद भी अमूल्य होता है । जिसने देने का भाव सीख लिया उसने जिंदगी जीना भी सीख लिया । देने में जो आनंद है वह लेने में कहां है ? प्रेम भी हमें यही सिखाता है पर कुछ मनुष्य न प्रेम करना जानते हैं और न ही जीना जानते हैं । अपनी स्वार्थ पूर्ति में ही जीवन को नर्क बना लेते हैं ।
साधिका पुष्प लेकर आ गई । देवयानी ने उन पुष्पों को देखा तो उनमें काला गुलाब नहीं था । "काला गुलाब लाने के लिए कहा था ना , फिर क्यों नहीं लाई" ? रोषपूर्वक देवयानी ने कहा ।
"काला गुलाब के पौधे में कोई पुष्प था ही नहीं तो कैसे लाती ? काले गुलाब के पौधे में कोई रोग लग गया है और वह पौधा मृतप्राय है" ।
"क्या तुम लोग उसकी देखभाल नहीं करते ? वह मेरा सबसे प्रिय पौधा है यह जानते हुए भी तुम लोगों ने उस पर समुचित ध्यान क्यों नहीं दिया" ? आवेश में आकर देवयानी आपा खोने लगी थी । "इनमें एक भी पुष्प ऐसा नहीं है जो मेरे आराध्य भोले भंडारी पर चढ़ाया जा सके । अब मैं पूजा कैसे करूंगी" ? देवयानी का आवेश अब रुदन में परिवर्तित हो गया था ।
"मैंने तो पहले ही कह दिया था कि एक माह में वह काला गुलाब का पौधा मर जाएगा , पर मेरी बात पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया" । कच ने कुटिया में प्रवेश करते हुए कहा । फिर उसने देवयानी की ओर देखकर कहना प्रारंभ किया "मुझे ज्ञात है कि आप श्रावण मास के सोमवार का व्रत रखती हो । आपकी पूजा के लिए मैं अपने उद्यान से विभिन्न प्रकार के पुष्प लेकर आया हूं । इनमें काला गुलाब भी है जो आपको बहुत पसंद है । लीजिए, और अपने आराध्य देव को प्रसन्न कीजिए" । कच ने देवयानी को अभिवादन करते हुए कहा ।
कच को यकायक अपनी कुटिया पर देखकर देवयानी विस्मित हो गई । वह आनंद अतिरेक में रोमाञ्चित हो गई । उसका मुख मंडल सूरजमुखी के पुष्प की भांति खिल गया । उसे स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि उसे कच के आने से आनंद की अनुभूति क्यों हो रही थी । कल रात को तो वह कच से ईर्ष्या कर रही थी और आज आनंद के सागर में गोते लगा रही है । मन की दशा भी बड़ी विचित्र होती है । पल में तोला और पल में माशा । घड़ी घड़ी बदलता है ये पागल मन । कच तो सुन्दर सुन्दर पुष्प लेकर आया था जैसे उसने उसके मन की बात सुन ली हो । कहीं ऐसा तो नहीं है कि भोले बाबा ने उसके हृदय के उद्गार सुन लिये हों और उन्होंने कच के रूप में अपना आशीर्वाद प्रेषित किया हो ? पर जो भी हो, कच का आगमन प्रसन्नता देने वाला सिद्ध हो रहा था देवयानी को ।
"अरे आप ? यहां , इस समय कैसे" ? देवयानी ने आश्चर्य से पूछा
"अपने आराध्य की पूजा करने जा रहा था । सोचा कि अपनी वाटिका के कुछ पुष्प आपको भी भेंट करता चलूं जिससे आप भी अपने आराध्य की पूजा में उन्हें अर्पित कर सकें" । कच के अधरों पर वही चिर परिचित सम्मोहक मुस्कान थी ।
"तो क्या आप भी देवाधिदेव महादेव के भक्त हैं ? मैं तो समझती थी कि देवता तो भगवान विष्णु के भक्त होंगे" । देवयानी ने कौतुहल से पूछा ।
"भगवान विष्णु तो अजन्मा और अविनाशी हैं और महादेव तो आशुतोष हैं , कृपालु हैं । देवता दोनों की क्यों ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की पूजा करते हैं" । कच की धीर गंभीर वाणी किसी "तत्वदृष्टा" की भांति लग रही थी ।
चलते चलते दोनों मंदिर पहुंच गये । देवयानी भगवान शंकर का अभिषेक करने लगी तो उसकी दृष्टि शिवलिंग पर चढ़े हुए कमल के लाल पुष्प पर पड़ी । यह कमल का पुष्प कुछ विशेष था । सामान्यत: कमल का पुष्प गुलाबी रंग का होता है पर यह कमल का पुष्प लाल रंग का था जिसमें पीले रंग की धारियां पड़ी हुई थीं । इस पुष्प की सुगंध से पूरा मंदिर महक रहा था । देवयानी ने ऐसा पुष्प पहले कभी देखा नहीं था । उसने प्रश्न वाचक दृष्टि से कच की ओर देखा । कच देवयानी के प्रश्न को समझ गया और इंकार में गर्दन हिला दी । तब देवयानी ने पुजारी से पूछा
"यह कमल का पुष्प बहुत सुंदर है । कहां से आया है यह" ?
"मुझे ज्ञात नहीं है देवी , मैं जब मंदिर आया था तब यह पुष्प शिवलिंग पर चढ़ा हुआ था । किसने चढाया , क्यों चढ़ाया , कुछ पता नही है ? पर मैंने सुना है कि ऐसे कमल के पुष्प अपने राज्य से लगते एक सागर के बीच में बने एक द्वीप के जलाशय में खिलते हैं । वहां तक पहुंचना लगभग असंभव है । मनुष्य तो वहां जा सकता नहीं , देवता या दैत्य ही ला सकते हैः वह पुष्प" । पुजारी ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा ।
देवयानी बड़े कौतुहल से पुजारी की बातें सुन रही थी और पुजारी की बातों के अनुसार "लाल कमल" को लाना असंभव है ऐसे वचन सुनकर वह निराश भी हो गईथी । उसने एक बार कच की ओर आशा भरी निगाहों से देखा । कच ने भी देवयानी को देखा पर उसकी आंखों में आत्मविश्वास नहीं था इसलिए उसने नजरें नीची कर लीं ।
श्री हरि
12.7.23
Varsha_Upadhyay
15-Jul-2023 07:45 PM
बहुत खूब
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Hari Shanker Goyal "Hari"
16-Jul-2023 01:29 PM
🙏🙏🙏
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Alka jain
15-Jul-2023 02:46 PM
Nice one
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Hari Shanker Goyal "Hari"
16-Jul-2023 01:29 PM
🙏🙏🙏
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Gunjan Kamal
14-Jul-2023 09:06 AM
👌👏
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Hari Shanker Goyal "Hari"
14-Jul-2023 10:32 AM
🙏🙏
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